दुनिया जहां एक तरफ कोरोना वायरस संक्रमण से लड़ रही है, भारत भी कोराना वायरस से लड़ रहा है वही चीन के प्रति दुनिया के देशों में जबरदस्त गुस्सा है क्योंकि कोरोना वायरस करने का जिम्मेदार चीन को माना जा रहा है । चीन इस समय कोरोना वायरस के अलावा भारतीय सीमा क्षेत्र पर भी चिंता का कारण बना हुआ है ।
चीनी सैनिक भारतीय सीमा से सटे इलाको में तैनात हैं और भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच झड़प की खबरें आती रहती हैं । भारत का जनमानस चीनी सामान के बहिष्कार करने पर आमदा है । सोसल मीडिया पर इसके लिए अभियान छिड़ा हुआ है ।
चीन को सबक सिखाने के लिए भारतीय जनमानस चीनी सामान का बहिष्कार करने की बात कर रहे हैं । भारतीय नागरिक चीन से किसी भी प्रकार का व्यापारिक संबंध नहीं रखना चाहते हैं । लोगो सब लोग भी मानना है चीन से व्यापारिक संबंध को कम करने या फिर पूरी तरीके से समाप्त करने के पक्ष में है ।
अब सवाल यह उठता है कि क्या व्यावहारिक रूप में ऐसा संभव है कि चीनी सामान का उपयोग न किया जाए या फिर चीनी सामान की खरीददारी को बंद कर दिया जाए । वैसे तो कुछ भी असंभव नहीं होता है और यहां देश कि सुरक्षा की बात है ऐसे में अगर कोई भी फैसला लिया जाएगा तब वह संभव होगा ।
लेकिन एक वास्तविकता यह भी है कि तत्काल रुप से चीनी सामान का बहिष्कार नहीं किया जा सकता है क्योंकि अगर भारत ऐसा करता है तब भारत की आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा बिगड़ जाएगी ।
इसलिए तर्कसंगत तरीके से भारतीय लोगों को काम करना होगा और चीनी सामानों का विकल्प ढूंढना होगा जिससे आने वाले भविष्य में चीनी सामानों से छुटकारा पाया जा सके । भारतीयों को यह समझना होगा कि यहां भावुकता का मसला नहीं है और भावनाओं में बहकर चीनी सामान का बहिष्कार करना उचित नहीं है ।
लोगों को व्यावहारिक तरीके अपनाने होंगे, वे तरीके अपनाने होंगे जिससे भारत को आर्थिक तौर से नुकसान न हो और भारत आत्मनिर्भर भी हो जाए । एक तरह से पहले की ‘सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’ ।
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भारत और चीन के बीच जो भी टकराव है जिसमें सीधे युद्ध के लिए कोई भी नहीं तैयार होगा क्योंकि युद्ध से दोनों ही देशों को नुकसान होगा ।
चीन समय-समय पर भारत को धमकाते रहता है वैसे चीन अमेरिका को भी नहीं बख्शा है और अमेरिका को भी धमकी देता रहता है । लेकिन व्यापारिक मसले पर चीन की नहीं चलती है ।
चीन समेत पूरी दुनिया में इस समय आर्थिक मंदी का दौर छाया हुआ है । परस्पर बेरोजगारी फैल रही है और मांग और पूर्ति का तालमेल बुरी तरीके से गड़बड़ा गया है । चीनी सत्ता के मन में भी डर बैठ गया है कि अगर लंबे समय तक यही हालात रहा तो उनके देश के ही लोगों का गुस्सा सड़कों पर उतर सकता है ।
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मालूम हो कि 1989 में चीन में लोकतंत्र की मांग होने पर 15 अप्रैल से 4 जून तक छात्र आंदोलन कर रहे थे तब उन्हें कुचलने के लिए चीनी शासन में तीन हजार सैनिकों को सड़क पर उतार दिया था । एक अनुमान के मुताबिक इसमें करीब दस हजार लोग मारे गए थे ।
इन दिनों चीन ताइवान के लिए युद्धपोत रवाना कर दिया है और हॉंगकॉंग के भी घेरा बंदी करने में लगा हुआ है, साथ ही भारत नेपाल सीमा विवाद को भी हवा दे रहा है और लद्दाख में अपनी सेना का जमावड़ा कर रहा है और यहां पर भारतीय सैनिक और चीनी सैनिक के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद होते रहते हैं हालांकि भारतीय सैनिक सैया से काम ले रहे हैं ।