ओबीसी आरक्षण का लाभ सभी तक समान रूप से पहुंचाने के लिए सरकार की योजना रही है। लेकिन अभी तक ऐसा सम्भव नही हो पाया है जबकि यह योजना तीन साल पहले 2017 में ही बना दी गई थी। ओबीसी क्रीमीलेयर की आय के दायरे को बढ़ाने को लेकर काफी खींचतान और मशक्कत हो रही थी लेकिन अब फिलहाल मामला ठंडे बस्ते में चला गया है।
इस पर विचार करने वाली संसदीय समिति का कार्यकाल खत्म हो गया है। अब इसके लिए कोई नई समिति का गठन किया जाएगा तभी शायद इस मसले पर फैसले की उम्मीद की जा सके।
बता दें कि ओबीसी क्रीमीलेयर का मामला उस समय शुरू हो गया था जब सरकार की एक उच्च स्तरीय कमेटी ने ओबीसी क्रीमी लेयर के दायरे को बढ़ाने की बात कही थी और इसे 8 लाख से बढ़ा कर 12 लाख तक करने की सिफारिश की गई थी और उसे तर्कसंगत बनाने पर भी विचार चल रहा था।
कुछ समय बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इसके लिए एक कमेटी बनाई और उसकी सिफारिश के आधार पर फार्मूला भी पेश किया था। इस सिफारिश में क्रीमी लेयर की आय के दायरे में वेतन और उनको मिलने वाले भत्ते सहित उनकी सभी प्रकार की आय को शामिल करने की बात कही गई थी।
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इस बारे में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि इस तरीके से क्रीमीलेयर तय करने को लेकर सभी तरह के विवाद और भ्रष्टाचार एक तरह से खत्म हो जायेगे।
लेकिन जैसे ही यह मामला भाजपा सांसद गणेश सिंह की निगरानी में आया तब ओबीसी कल्याण का मामला संसदीय समिति के पास पहुंच गया। उसके बाद इसे लेकर कमेटी ने आपत्ति की और मोर्चा तक खोल दिया।
ओबीसी क्रीमी लेयर मामले में बढ़ सकता है विवाद –
कमेटी ने ओबीसी की आय में वेतन और भत्तों को भी शामिल करने के प्रस्ताव को गलत कहा है। मौजूदा समय में ओबीसी क्रीमी लेयर की आय में फिलहाल अन्य दूसरे व्यवसाय और उन के माध्यम से होने वाली आय को जोड़ा जाता है लेकिन इसके आकलन में भ्रम की स्थिति स्थिति बन जाती है।
दूसरे शब्दों में कहें तो मौजूदा समय में जो ओबीसी क्रीमी लेयर की व्यवस्था है वह पूरी तरह पारदर्शी नही थी इसलिए सरकार ने आय के आकलन के आधार पर एक स्टैंडर्ड फॉर्मूला का सुझाव दिया था, जिसमें आय के अन्य स्रोतों को भी शामिल करने की बात कही गई थी। लेकिन इस मामले में भाजपा सांसद गणेश सिंह आ गए तब यह मामला संसदीय समिति के पास पहुंच गया।
फिलहाल तो यह मामला अभी ठंडा पड़ गया है क्योंकि ओबीसी कल्याण से जुड़े मामलों को देखने वाली समिति का कार्यकाल खत्म हो गया है। ऐसे में अब नई समिति के गठन के बाद ही मामला आगे बढ़ पाएगा।
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बता दें कि ओबीसी क्रीमी लेयर की आय को साल 2017 में बढ़ाकर छः लाख से आठ लाख कर दिया गया था और सरकारी नौकरियों में इसी आधार पर ओबीसी को 27% आरक्षण देने का प्रावधान है। यानी कि जिनकी आय आठ लाख से अधिक होगी उन्हें नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का पात्र नही माना जाएगा।
सरकार की मंशा थी कि ओबीसी का लाभ सभी को समान रूप से पहुंच सके लेकिन फिलहाल यह योजना अभी तक साकार नही हो पाई है। इस योजना को सरकार द्वारा 2017 में ही बना दिया गया था और 12 हफ्ते के अंदर जस्टिस जी रोहणी की अगुवाई में एक गठन करके रिपोर्ट देने की बात कही गई थी।
इस आयोग के तहत यह पता लगाया कि ओबीसी के अंतर्गत कौन-कौन सी जातियां आती हैं जो कि फिलहाल ओबीसी के लाभ से वंचित हैं। सरकार ने इसके लिए आरक्षण के वर्गीकरण करने का फैसला भी लिया था लेकिन 3 साल बाद भी कुछ भी नहीं हो पाया बस आयोग का कार्यकाल बढ़ता गया। अब इस आयोग के कार्यकाल को 31 जनवरी 2021 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।