राजस्थान का सियासी घमासान थमता हुआ नजर आ रहा है जिसे 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस हाईकमान की पहली राजनीतिक सफलता के तौर पर भी देखा जा रहा है। लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और युवा सचिन पायलट के बीच निजी कटुता के बीच संतुलन बनाए रखना कांग्रेस के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
इस बीच राजस्थान में पार्टी के अंदर होने लड़ाई की हल का श्रेय लेने के लिए होड़ लग गई है। वही अशोक गहलोत गांधी परिवार के बाद सबसे ताकतवर नेता के रूप में भी उभर रहे हैं। ऐसे में बगावत करने से वापस लौटे कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट की सियासी जमीन राजस्थान में कमजोर होती नजर आ रही है।
लेकिन इसका यह मतलब नही है कि सचिन पायलट की राजनीतिक महत्वाकांक्षा कम हो गई है। लेकिन इस बीच पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस बात से इंकार नहीं कह रहे हैं कि सचिन पायलट चाहे जितनी निष्ठा और प्रतिबद्धता दिखाने की कोशिश कर ले लेकिन बगावत प्रकरण की वजह से उपजा अविश्वास उनका पीछा नहीं छोड़ेगा।
सचिन पायलट को लेकर कांग्रेस हाईकमान का रुख नरम है और पार्टी इस युवा नेता की प्रतिष्ठा को भी कायम रखना चाहती है। लेकिन अशोक गहलोत के कड़े रुख के चलते फिलहाल कांग्रेस हाईकमान सचिन पायलट को कोई पद देने का वादा शायद ही कर पाये।
अब आने वाले भविष्य में राजस्थान में दोनों के बीच तालमेल बनाए रखना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। इस घटना के बाद राजस्थान में गहलोत हमेशा के लिए सतर्क रहेंगे और सचिन पायलट उनके शंसय की सूची में रहेंगे।
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राजस्थान में सियासी घमासान को खत्म करने की प्रक्रिया इस हफ्ते पहले ही शुरू हो गई थी और यह सब कुछ कांग्रेस के आलाकमान के इशारे पर शुरू हुआ था। कांग्रेस में इस घमासान को खत्म करने और कांग्रेस के दोनों खेमों में समझौता कराने में कांग्रेस के कुछ केंद्रीय नेता और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की।
कांग्रेस के आलाकमान द्वारा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बागी विधायकों को गले लगाने और उन्हें माफ करने की बात कही गई। तब अशोक गहलोत खेमे के विधायकों ने कहा कि यदि आलाकमान सचिन पायलट और अन्य बागी विधायकों को माफ कर देती है वह भी आगे बढ़कर उन्हें गले लगाएंगे।
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हालांकि अंतिम दौर तक गहलोत खेमा यही चाहता था कि यह समझौता न हो लेकिन अंत में कुछ केंद्रीय नेताओं की मदद से यह समझौता हो गया और सचिन पायलट की कांग्रेस में वापसी हो गई।
जब सचिन पायलट ने बगावत करने और अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोला था तब इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन पायलट भी सिंधिया की तरह कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले हैं।
लेकिन उस वक्त सचिन पायलट ने साफ कर दिया था कि वह भाजपा में शामिल नहीं होंगे वह कांग्रेस में ही रहेगें। इससे भाजपा नेताओं द्वारा सचिन पायलट को भाजपा में शामिल करने की कोशिश ढीली पड़ने लगी थी।