रूस ने विदेशी बाजार के लिए कोरोना वायरस के लिए बनाई अपनी वैक्सीन को “स्पूतनिक वी” का भी नाम दिया है। यह नाम रूस ने अपने पहले उपग्रह के नाम पर रखा है। बता के की तत्कालीन सोवियत संघ जो अब रूस के नाम से जाना जाता है, ने 1957 में ‘स्पुतनिक-1’ अपना पहला उपग्रह लांच कर के दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया था।
रूस के प्रत्यक्ष निवेश निधि के प्रमुख ने बताया कि रूस द्वारा बनाई गई कोरोना वायरस वैक्सीन की एक अरब खुराक बनाने के लिये 20 देशो से आर्डर मिला है। इसमें लैटिन अमेरिका, दक्षिण-पश्चिम एशियाई देश शामिल है जिन्होंने रूस से ठीके को खरीदने में रुचि दिखाई और कॉन्ट्रैक्ट किया है।
बता दें कि रूस द्वारा कोरोना वायरस की दुनिया की पहली वैक्सीन आज 12 अगस्त को रजिस्टर्ड हो गई है। इस बात की जानकारी रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने दी हैम इस अवसर पर उन्होंने उन सभी लोगों का धन्यवाद किया है जिन्होंने इस वैक्सीन के ऊपर काम किया है।
रूस के राष्ट्रपति ने दावा किया है कि उनके देश द्वारा बनाई गई कोरोना वायरस की वैक्सीन सभी टेस्ट से गुजर चुकी है और सफल रही है, अब बड़े पैमाने पर इस वैक्सीन का उत्पादन किया जाएगा। यह क्षण अपने आप में ऐतिहासिक है। जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस की वैक्सीन का परीक्षण कर रही है, रूस में बाजी मारते हुए सबसे पहले कोरोना वायरस की वैक्सीन बना ली।
यह ठीक उसी तरह है जैसे रूस ने सबसे पहले उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा था। इसलिए इसे ऐतिहासिक दिन करार करते हुए इस वैक्सीन का नाम रूस के पहले उपग्रह ग्रह के नाम पर रखा गया है। रूस द्वारा बनाई गई इस वैक्सीन को आम लोगों के लिए जनवरी से उपलब्ध करा दिया जाएगा।
पुतिन ने एक सरकारी बैठक में बताया कि यह टीका हर परीक्षा में खरा उतरा है और कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बना पाने में सफल रही है। दुनिया के विभिन्न देशों को इस ठीके को मुहैया कराने के लिए जल्द ही बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन किया जाएगा।
रूसी राष्ट्रपति ने यह भी बताया है कि कोरोना वायरस की इस वैक्सीन का पहला टीका उनकी दो बेटियों में से एक बेटी को लगाया गया है जिसकी पहली खुराक के बाद उनकी बेटी को हल्का बुखार हुआ था और दूसरी खुराक लेने के बाद भी हल्का बुखार हुआ था लेकिन इसके बाद सब कुछ सही हो गया और उसके अंदर एंटीबॉडी बढ़ गई।
वैक्सीन लगाने के बाद हल्का बुखार आने इस बात का संकेत है कि यह काम कर रही है। बता दें कि रूस द्वारा बनाया गया यह टीका रूस के रक्षा मंत्रालय और गामलेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने मिलकर बनाया है।
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इस टीके के संबंध में जानकारी मिली है कि यह वैक्सीन दो इंजेक्शन के रूप में है, जिसमें से एक तरल और एक घुलनशील पावडर के रूप में है। इस वैक्सीन को दवाओं के पंजीकरण करने वाले सरकारी विभाग की वेबसाइट पर रजिस्टर कर के इस बारे में जानकारी दी गई है कि आम लोगों के लिए यह वैक्सीन साल 2021 से जनवरी महीने से शुरू हो जाएगी और रूस बड़े पैमाने पर इसका टीकाकरण करेगा।
मीडिया के अनुसार इस वैक्सीन का पहला मानव परीक्षण यानी कि क्लिनिकल ट्रायल का पहला चरण 18 जून से शुरू हुआ था। शुरू में 830 वालेंट्रीयर को यह टीका लगाया गया था। इसका दूसरा चरण 13 जुलाई से शुरू हुआ था और 20 जुलाई को उन लोगों को डिस्चार्ज कर दिया गया।
इस वैक्सीन का तीसरा क्लीनिकल ट्रायल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश में किया जाएगा। रूस के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि सबसे पहले यह टीका स्वास्थ्य चिकित्साकर्मियों, शिक्षकों और जोखिम के वक्त काम में लगे हुए लोगों को लगाया जाएगा।
उसके बाद यह टीका सीनियर सिटीजन को लगाया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि वैक्सीन का उत्पादन देश के दो जगह पर चार देशो के साथ बड़े पैमाने पर किया जाएगा। फिलहाल अभी इस वैक्सीन को सीमित स्तर पर भी उत्पादित किया जा रहा है। सितंबर से इसका उत्पादन औद्योगिक स्तर पर किया जाएगा और अक्टूबर से देशभर में टीका लगाने का अभियान शुरू हो सकता है।
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हालांकि रूस के इस टीके पर अमेरिका संदेह की दृष्टि से देख रहा है। अमेरिका का कहना है कि तीसरे चरण से पहले टीके का पंजीकरण करने के निर्णय पर सवाल उठाया है। आमतौर पर किसी भी टीके का तीसरे चरण का परीक्षण कई महीनों तक चलता है।
वहीं अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि किसी भी वैक्सीन को बनाने में सबसे महत्वपूर्ण चीज सुरक्षित और कारागार वैक्सिंग बनाना होता है।
वही सुरक्षा समझौते को आशंका को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने भी रूस को आगाह किया है और कहा है कि सुरक्षित और प्रभावी टीके के लिए मानकों को ध्यान में रखकर काम करें। वहीं रूस के स्वास्थ्य मंत्री ने अमेरिका द्वारा लगाए गए आरोपों को निराधार करार दिया है।